Monday, February 18, 2008


चंद लफ़्जों में गर

सिमट जाती मेरी जिन्दगी

तो यकीन मानो

वह तुम्हारा नाम होता

Wednesday, February 13, 2008

NASTIK


तुमने पतंग बनाई
और कहा उड़ो
फिर तुमने धागा भी बनाया
और कहा बंधो
तुमने जीवन की नियति तय कि
बंधे हुए उड़ो
पर यह उड़ान कि मंजिल तो नहीं
इस लिए मैंने तुम्हारी बनाई
पतंग, धागे और कहे में
कभी विश्वास नहीं किया
और लोगों ने कहा कि
मैं नास्तिक हूँ .

Tuesday, February 12, 2008

KAVITA, NAMAK AUR TUM


कविता बेरहम समय की कुंजी है
मैं कविता नहीं लिखता
कलम उठाता हूँ
और धर से खुलती हो तुम
मेरे अन्दर
और मैं तुम्हारी यादों की धूप में
कपड़े सा पसर जाता हूँ
फिर जब तुम पिघलती हो मेरे अंदर
सूखे बदन पर थोड़ी नमी
बची रह जाती है
और तब कहता हूँ मैं
नमक का स्वाद
कविता मैं तुम्हें जीता हूँ