Friday, May 30, 2008

ऐ इन्द्रधनुष

तुम्हारे चेहरे पर
पकती धूप
फिर गुनगुनाई है
पत्थरों के माथे पर
पसीने की बूंदे
थिरक आई है
ये क्या कहा है
तुमने गुलशन से
फूलों की रंगत
फिर शरमाई है
एक बार जो रंग
तुम मुझे भी दो उधार
बाँट दूँ दुनिया मे
रंग- ए- प्यार
ऐ इन्द्रधनुष
कभी तो
मेरे पते पर भी आ