
कविता बेरहम समय की कुंजी है
मैं कविता नहीं लिखता
कलम उठाता हूँ
और धर से खुलती हो तुम
मेरे अन्दर
और मैं तुम्हारी यादों की धूप में
कपड़े सा पसर जाता हूँ
फिर जब तुम पिघलती हो मेरे अंदर
सूखे बदन पर थोड़ी नमी
बची रह जाती है
और तब कहता हूँ मैं
नमक का स्वाद
कविता मैं तुम्हें जीता हूँ