Friday, June 20, 2008

अन्तर

अच्छा लगता है
देखना
जब तुम निश्छल हंसती हो
तुम्हारी हँसी
अच्छी है
क्योंकि यह
मांगी हुई
नहीं लगती
मेरी हँसी
थोडी मायूस है
रोने के किश्त पर
उधार पर
लाया हूँ

Wednesday, June 18, 2008

ख्वाब


ख्वाब तुम्हारी हथेली की

गर्मियों से

घुटने चलते हुए

मेरे दिल की

धड़कनों में

जवान हो

जाते हैं

Thursday, June 5, 2008

कपड़े

समय की अलगनी पर
अब भी लटके पड़े हैं
मेरे द्वारा उतारे गए
कितने जिस्म
जो लोगों को कपड़े दिखते हैं

एक जिस्म वह है
जो छोड़ आया था
माँ की स्नेहिल क़दमों के तले
जो अब तक सिसक रहा है
वहीं पड़े
एक जिस्म वह जो
अब तक रोता है
बाप की छाती से लगकर कि
मैंने कुछ बनने का
वायदा किया था

दूर से आती है
मेरे अरमानों के सिसकने की आवाजें
वहीं मेज पर पड़ी है
मेरी पहली कमाई से
खरीदी गई शाँल
जो पिता के लिए थी, जिसे
ओढ़कर भईया अब भी देखते हैं मुझे
जब तब

आदमी की तो फितरत है
क्यों समय!
अब तुम भी
कपड़े बदलने लगे


Tuesday, June 3, 2008

द्वंद्व


एक बूंद पानी ठहरा है

नम आंखों की कोरों में

और एक उजाला दूर... तक

फटता चला जाता है

अंधेरे में बदल जाने तक


एक चिपटा सा ख्वाब

सच्चाई से और दबा

चला जाता है

और जोर से

कुलबुलाता है

उसमें बची एक बूंद का

पृष्ठिय तनाव

काश्मीर


एक आंच ठहरी है

सतरंगी सपने वाले पेड़ों की ज़ड़ों में

और डालों पर लगते हैं

आग के फूल

रक्ताभ लाल


सोचता हूँ

इन आग के फूलों वाले

काफिर पेड़ों को जब तक

मुसलमान बनाया जाएगा

झड़ ही जायेंगे पेड़ के फूल

तब ठूंठों की जमात से

कौन सा कलमा पढ़ाया जाएगा ?


आख़िर किसी भी धर्म में

मर्सिया... कलमा तो नहीं होता

पीले गुलाबों का रंग

चम्पई धूप में खिले
पीले गुलाबों का रंग
इन आंखों से कबका उतर जाता
गर उनसे जुड़ी
तुम्हारी यादें न होतीं

सच है
पुराने मौसमों में खिले
फूलों के रंग
कभी नही जाते हैं

Monday, June 2, 2008

नियति

मैं तुमसे मिलूंगा
इतिहास के पन्नों में दर्ज होने से पहले
यह मेरा वादा है
पर ठीक ऐसा का ऐसा ही
यह कहना आज थोड़ा कठिन है, कल
नामुमकिन होगा

तुम्हारे काले घने बालों के अनंत में
जब एक अनाम रिश्ते का सूरज
अंगुलियों सा सिहरेगा
तब ठूंठ हो चुकी रिश्ते की शाख पर
मैं एक पीला गुलाब तब भी बचाए रखूंगा
पर यह कहना आज थोड़ा कठिन है, कल
शायद नामुमकिन हो कि
मैं तब भी बचा पाउँगा
अपनी हथेली में सपने और
तुम्हारी गर्म गालों का एहसास

तब शायद मेरे टूटे जूते में ही हो जाए
पूरी की पूरी बरसात

जंगल, शहर या मैं

मैं एक जलता हुआ पेड़
मुझे निर्वासित किया है जंगल ने
जलने के डर से
अब रोज मुझमे एक जंगल जलता है
शहर पैदा होता है
फिर शहर फैलता है मुझमें
जंगल बनता है
इसी तरह मैं जीवित रहता हूँ
मैं जीवित रहता हूँ
इसलिए जलता हूँ
मैं जंगल, शहर या फिर
दोनों में ही
मरता हुआ पेड़ हूँ