Friday, May 30, 2008

ऐ इन्द्रधनुष

तुम्हारे चेहरे पर
पकती धूप
फिर गुनगुनाई है
पत्थरों के माथे पर
पसीने की बूंदे
थिरक आई है
ये क्या कहा है
तुमने गुलशन से
फूलों की रंगत
फिर शरमाई है
एक बार जो रंग
तुम मुझे भी दो उधार
बाँट दूँ दुनिया मे
रंग- ए- प्यार
ऐ इन्द्रधनुष
कभी तो
मेरे पते पर भी आ

3 comments:

डा. अमर कुमार said...

ब्लागजगत में स्वागत है,
साजसज्जा एवं सामग्री अतिउत्तम !
यहाँ बारंबार आना पड़ेगा ।
बधाई !

पी के शर्मा said...

इंद्र धनुष अवश्‍य आयेगा आपके द्वार
करते रहिये प्रकृति से प्‍यार

आशीष कुमार 'अंशु' said...

वाह-वाह