अच्छा लगता है
देखना
जब तुम निश्छल हंसती हो
तुम्हारी हँसी
अच्छी है
क्योंकि यह
मांगी हुई
नहीं लगती
मेरी हँसी
थोडी मायूस है
रोने के किश्त पर
उधार पर
लाया हूँ
Friday, June 20, 2008
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मैं इसलिए लिखता हूँ क्योंकि मैं इससे बेहतर कोई और काम नही कर सकता हूँ. लिखना अपने होने को बेहतर ढंग से जीने की तरह है और कभी-कभी दूसरों की सांसों को कलम की नोक पर महसूस करने जैसा भी, जो आपको छू ले तो वही नहीं रहने देती जो आप पहले थे. वह पहले थपथपाकर हल्के से दस्तक देती है फिर किवाड़ खोलकर कहती है... आईये हमारी जिंदगी में आपका स्वागत है.
3 comments:
vha bhut khub.likhate rhe.
khoobsoorat. udhar ki hansi...bahut khoob
क्या लिखा है जनाब! कहां हैं आजकल, दिखते नहीं हैं?
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