Tuesday, June 3, 2008

द्वंद्व


एक बूंद पानी ठहरा है

नम आंखों की कोरों में

और एक उजाला दूर... तक

फटता चला जाता है

अंधेरे में बदल जाने तक


एक चिपटा सा ख्वाब

सच्चाई से और दबा

चला जाता है

और जोर से

कुलबुलाता है

उसमें बची एक बूंद का

पृष्ठिय तनाव

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