Monday, June 2, 2008

नियति

मैं तुमसे मिलूंगा
इतिहास के पन्नों में दर्ज होने से पहले
यह मेरा वादा है
पर ठीक ऐसा का ऐसा ही
यह कहना आज थोड़ा कठिन है, कल
नामुमकिन होगा

तुम्हारे काले घने बालों के अनंत में
जब एक अनाम रिश्ते का सूरज
अंगुलियों सा सिहरेगा
तब ठूंठ हो चुकी रिश्ते की शाख पर
मैं एक पीला गुलाब तब भी बचाए रखूंगा
पर यह कहना आज थोड़ा कठिन है, कल
शायद नामुमकिन हो कि
मैं तब भी बचा पाउँगा
अपनी हथेली में सपने और
तुम्हारी गर्म गालों का एहसास

तब शायद मेरे टूटे जूते में ही हो जाए
पूरी की पूरी बरसात

जंगल, शहर या मैं

मैं एक जलता हुआ पेड़
मुझे निर्वासित किया है जंगल ने
जलने के डर से
अब रोज मुझमे एक जंगल जलता है
शहर पैदा होता है
फिर शहर फैलता है मुझमें
जंगल बनता है
इसी तरह मैं जीवित रहता हूँ
मैं जीवित रहता हूँ
इसलिए जलता हूँ
मैं जंगल, शहर या फिर
दोनों में ही
मरता हुआ पेड़ हूँ