मैं तुमसे मिलूंगा
इतिहास के पन्नों में दर्ज होने से पहले
यह मेरा वादा है
पर ठीक ऐसा का ऐसा ही
यह कहना आज थोड़ा कठिन है, कल
नामुमकिन होगा
तुम्हारे काले घने बालों के अनंत में
जब एक अनाम रिश्ते का सूरज
अंगुलियों सा सिहरेगा
तब ठूंठ हो चुकी रिश्ते की शाख पर
मैं एक पीला गुलाब तब भी बचाए रखूंगा
पर यह कहना आज थोड़ा कठिन है, कल
शायद नामुमकिन हो कि
मैं तब भी बचा पाउँगा
अपनी हथेली में सपने और
तुम्हारी गर्म गालों का एहसास
तब शायद मेरे टूटे जूते में ही हो जाए
पूरी की पूरी बरसात
Monday, June 2, 2008
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3 comments:
एक सुंदर रचना!
very nice one. keep itup. aap achcha likh rahe hain. aur bhi achchaa likhen,, shubhkamnayen.
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ultateer.blogspot.com
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