Tuesday, June 3, 2008

काश्मीर


एक आंच ठहरी है

सतरंगी सपने वाले पेड़ों की ज़ड़ों में

और डालों पर लगते हैं

आग के फूल

रक्ताभ लाल


सोचता हूँ

इन आग के फूलों वाले

काफिर पेड़ों को जब तक

मुसलमान बनाया जाएगा

झड़ ही जायेंगे पेड़ के फूल

तब ठूंठों की जमात से

कौन सा कलमा पढ़ाया जाएगा ?


आख़िर किसी भी धर्म में

मर्सिया... कलमा तो नहीं होता

3 comments:

डॉ .अनुराग said...

bahut khoobsurat...lajavaab...

सुशील राघव said...

bahut badiya!!!!!!!!!!!

Aditya dew said...

bahut achchha.Isi tarah likhte rahiye