Sunday, May 19, 2013

हमें कभी किसी ने दुआओं में नहीं माँगा
हम लोगों के हिस्सों में आए बद्दुआओ की तरह Page copy protected against web site content infringement by Copyscape

Monday, August 4, 2008

चवन्नी में चाँद

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चाँद चमकता है

आसमान पर

और चवन्नी हथेली में

माँ बताती है

बचपन में चवन्नी खर्चते हुए

हथेली अक्सर आसमान हो जाती थी



आज जब ढूँढने पर भी

नहीं मिलती चवन्नी

और फ्लैटों की

उँचाइयों के पीछे

रोज बिसूरता है

चंदा मामा



तब सोचता हूँ

हाथों में चवन्नी भींचे

पहले लगता था कि

इस चवन्नी में ही

खरीद लूँगा

फोफी, लेमनचूस, दिलखुशार रेवड़ी,

पॉपिन्स, फिरनी, नानी के लिए पान

और...

कभी आधा

तो कभी

पूरा चाँद



अब जब बच्चे

मांगते हैं टेडी बियर, लेज़र गन,

कृष के खिलौने, वीडियोगेम

और एन्साइक्लोपीडिया की सीडी

तब घबराता हूँ

क्या आने वाली पीढ़ी

ढूंढ पायेगी

विकिपीडिया में

चँदा मामा के किस्से?

कैसे समझाऊंगा उन्हें

क्या है

चवन्निया मुस्कान

जब नहीं रहेगी

चवन्नी और

भाग जाएगा

बच्चों के पलकों पर

पांव रखकर

सपनों का चाँद



और तो और

मैं तो यह भी नहीं

बता पाउँगा कि

कभी चवन्नी में ही

पा जाते थे चाँद










Tuesday, July 15, 2008

बानगी

जिंदगी जीने वाले उस्ताद कई
हम ही नहीं हैं फिर भी बर्बाद कई
एक बार जो दिखा दी हमने बानगी
रुक कर करेंगे मेरा भी इंतजार कई

Friday, June 20, 2008

अन्तर

अच्छा लगता है
देखना
जब तुम निश्छल हंसती हो
तुम्हारी हँसी
अच्छी है
क्योंकि यह
मांगी हुई
नहीं लगती
मेरी हँसी
थोडी मायूस है
रोने के किश्त पर
उधार पर
लाया हूँ

Wednesday, June 18, 2008

ख्वाब


ख्वाब तुम्हारी हथेली की

गर्मियों से

घुटने चलते हुए

मेरे दिल की

धड़कनों में

जवान हो

जाते हैं

Thursday, June 5, 2008

कपड़े

समय की अलगनी पर
अब भी लटके पड़े हैं
मेरे द्वारा उतारे गए
कितने जिस्म
जो लोगों को कपड़े दिखते हैं

एक जिस्म वह है
जो छोड़ आया था
माँ की स्नेहिल क़दमों के तले
जो अब तक सिसक रहा है
वहीं पड़े
एक जिस्म वह जो
अब तक रोता है
बाप की छाती से लगकर कि
मैंने कुछ बनने का
वायदा किया था

दूर से आती है
मेरे अरमानों के सिसकने की आवाजें
वहीं मेज पर पड़ी है
मेरी पहली कमाई से
खरीदी गई शाँल
जो पिता के लिए थी, जिसे
ओढ़कर भईया अब भी देखते हैं मुझे
जब तब

आदमी की तो फितरत है
क्यों समय!
अब तुम भी
कपड़े बदलने लगे


Tuesday, June 3, 2008

द्वंद्व


एक बूंद पानी ठहरा है

नम आंखों की कोरों में

और एक उजाला दूर... तक

फटता चला जाता है

अंधेरे में बदल जाने तक


एक चिपटा सा ख्वाब

सच्चाई से और दबा

चला जाता है

और जोर से

कुलबुलाता है

उसमें बची एक बूंद का

पृष्ठिय तनाव